varuthini ekadashi vrat katha in hindi

Varuthini Ekadashi Vrat Katha in Hindi – वरुथिनी एकादशी व्रत कथा

हिन्दू सभ्यता के अनुसार वैशाख कृष्ण पक्ष में मनाई जाने वाली वरुथिनी एकादशी का बहुत महत्ब माना जाता है। इस पोस्ट में पढ़ते हैं  Varuthini Ekadashi Vrat Katha in Hindi

वरुथिनी एकादशी वैशाख कृष्ण पक्ष में एकादशी के दिन मनाई जाती है। यह व्रत सुख और सौभाग्य का प्रतीक होता है। सुपात्र ब्राह्मण को दान देने , करोडो वर्षो तह तपस्या करने और कन्यादान के भी फल से बढ़कर वरुथिनी एकादशी के व्रत का महत्ब मन जाता है। इस व्रत में अलोना रहकर तेल युक्त भोजन नहीं करना चाइये। इसका माहात्म्य सुनने से सौ गों हत्या पे पाप से भी मुक्ति मिल सकती है। यह इतना फलदायक व्रत होता हैं।

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Varuthini ekadashi Vrat Katha in Hindi – वरुथिनी एकादशी व्रत कथा

प्राचीन कल की बात है ,काशी नगरी में एक ब्राह्मण रहता था। उसके तीन लड़के थे। उसका सबसे बड़ा बेटा बुरे विचारो वाला एक पापी पुरुष था। उसका परिवार भिक्षा से चलता था। ब्राह्मण सुबह जल्दी ही भिक्षा मांगने हेतु निकल जाता और सायंकाल के समय घर वापस आता।

एक दिन उस ब्राह्मण को बुखार हो गया और उसने अपने तीनो पुत्रो को भिक्षा मांगने के लिए भेज दिए। पिता की आज्ञा अनुसार तीनो पुत्र सायंकाल के समय भिक्षा मांगकर घर वापस आ गए। ब्राह्मण ने जब देखा कि उसके पुत्र भिक्षा लेकर आये हैं तो वो बहुत खुश हुआ। इस प्रकार उनकी गृहस्थी चलने लगी।

एक दिन ब्राह्मण ने अपने बेटों को बुलाया और कहाँ कि अब तुम सब बड़े और ज़िम्मेदार हो गए हो। इसलिए तुम सब को शास्त्र और वेदो का ज्ञान अर्जित करना चाइये। पिता कि बात सुनकर बड़ा बेटा वहां से चला गया और दोनों छोटे लड़के शास्त्र और वेदो का अध्यन करने में जुट गए। लगातार अध्यन करने से दोनों छोटे लड़के बड़े विद्वान बन गए।

एक दिन बड़ा लड़का भिक्षा मांगने गया। उसने पहला दरवाजा खटखटाया। अनादर से एक सुन्दर युवती निकली। लड़का उस युवती पर मोहित हो गया और उसके मन में प्रेम कि भावना उत्पन्न हो गयी। अपनी बातों में फसांकर वह उस युवती को अपने घर ले आया। ब्राह्मण ने जब ये सब देखा तो वो बहुत क्रोधित हो गया और उसने अपने बड़े लड़के को उस युवती के साथ अपने घर से निकाल दिया।

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एक बार छोटा लड़का भिक्षा मांगते – मांगते अपने बड़े भाई के घर तक जा पहुंचा। अपने छोटे भाई को देख कर बड़े भाई ने उसे अपने पास बैठाया और कहा कि उसे अपनी गलती का एहसास हो गया है और वो अपने किये हुए पापो से मुक्त होना चाहता है इसके लिए उसे कोई उपाय बताओ। छोटा लड़का बोला – वैशाख कृष्ण पक्ष एकादशी को वरुथिनी एकादशी कहते हैं। उसका तुम व्रत रखना और भगवान् श्री हरी के बारह अवतार की पूजा करना। रात में उनकी मूर्ति के पास ही सोना। दिन में ब्राह्मणो को भोजन करवाना और सोने की अंगूठी दान में देना। इस व्रत के प्रभाव से तुम्हारे समस्त पाप नष्ट हो जायेंगे।

अपने छोटे भाई की बात सुन कर बड़े भाई ने वरुथिनी एकादशी का व्रत किया और पुरे विधि – विधान से श्री हरी के बारह अवतार के पूजा करके ब्राह्मणो को भोजन करा कर उनका आशीर्वाद लिया। दिन में श्री हरी का कीर्तन किया और रात में मूर्ति के पास ही सो गया। सोने के बाद सपने में उसे श्री हरी के दर्शन हुए और वो अपने समस्त पापों से मुक्त हो गया।

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सुबह उठकर उसने अपनी पत्नी को पास जाकर सारा वृतांत सुनाया। स्वप्न सुनकर उसकी पत्नी बहुत खुश हुयी। बड़ा लड़का अपनी पत्नी को लेकर पाने पिता के पास पहुंचा और प्रणाम किया। पिता अपने पुत्र और बहु को क्षमा करके घर के भीतर ले गया और फिर वे सब एक साथ आनंद से रहने लगे। बड़े लड़के ने भी शास्त्र और वेदों का अध्यन करना शुरू कर दिया और एक बड़ा विद्वान बन गया।

हे वरुथिनी एकादशी माता ! जैसे ब्राह्मण के लड़के को पाप मुक्त कर दिया वैसे ही अपने सारे भक्तो को पाप से मुक्त करना।

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