Sheesh ka dani Barbarik – भगवद्भक्त बर्बरीक भीम व हिडिम्बा का पौत्र तथा घटोत्कच व कामकंदला का पुत्र था। यद्यपि बर्बरीक का जन्म राक्षस वंश में हुआ था, तथापि वह बाल्यावस्था से ही बुद्धिमान व धर्मात्मा था। बर्बरीक ने महिसागर-संगम नामक तीर्थ में जाकर निष्ठापूर्वक नर्वदुर्गा की तीन वर्षो तक कठोर आराधना की थी।

Sheesh ka dani Barbarik

इस बीच उसके सम्मुख बड़ी-बड़ी बाधाएं उत्पन्न हुई, परन्तु बर्बरीक तनिक भी विचलित नहीं हुआ। अन्त में मां दुर्गा ने उसे साक्षात् दर्शन देकर वर मांगने को कहा। तब बर्बरीक ने कहा- मां! मुझे ऐसी शक्ति दो, जिससे मैं तो संसार को जीत सकूं, परन्तु मुझे कोई न जीत सके। मां ने उसे इच्छित वरदान दिया और अन्तध्र्यान हो गई।

बर्बरीक के पास मां दुर्गा द्वारा प्रदत्त ऐसी अद्भुत शक्तियां व दिव्यास्त्र थे, जिनसे वह पूरे विश्व में प्रलय मचा सकता था। बर्बरीक महाभारत का युद्ध देखने के लिए अपने रथ पर सवार हो कुरूक्षेत्र के मैदान में पहुंचा। वह एक पीपल के वृक्ष के नीचे विश्राम कर रहा था।

संध्या का समय था, सैनिकों ने कौतुहल वश पूछा कि- आप किस पक्ष की ओर से युद्ध करेंगे। तब बर्बरीक ने कहा- मैं उसकी तरफ से युद्ध करूंगा जो युद्ध में पराजित होगी। मेरे पास तीन बाण हैं।

मैं एक ही बाण से शत्रु सेना का संहार कर सकता हूं। छूटने वाला मेरा पहला बाण हर व्यक्ति के मृत्यु स्थल को चिन्हित कर देगा तथा दूसरा बाण लक्ष्य को बींध देगा। एक सैनिक ने पूछा- आपका परिचय? मैं भीम का पौत्र व घटोत्कच का पुत्र बर्बरीक हूं।

बर्बरीक की बात कुछ ही देर में दोनों शिविरों तक पहुंच गई। श्री कृष्ण ने जब बर्बरीक के विषय में सुना तो वे बर्बरीक के पास पहुंचे और उसे अपनी वीरता का प्रदर्शन करने के लिए कहा तथा उसकी परीक्षा के लिए पीपल के दो पत्ते मुट्ठी में तथा एक पैर के नीचे छिपा लिया। परन्तु आश्चर्य बर्बरीक द्वारा छोड़े गये तीर ने उनकी मुट्ठी व पैर के नीचे दबे पत्ते को भी बींध दिया था।

श्री कृष्ण बहुत चिन्तित हुए। अगले दिन प्रातःकाल के समय वे एक ब्राह्मण के रूप में बर्बरीक के पास भिक्षा मांगने आये। बर्बरीक ने उनसे उनकी इच्छा पूछी, तो ब्राह्मण वेशधारी श्री कृष्ण ने उनसे उसका शीश मांग लिया। इस पर बर्बरीक ने कहा- महाराज! मैं आपको पहचान गया हूं।

आप ब्राह्मण के वेश में स्वयं भगवान श्री कृष्ण हैं। आपकी इच्छानुसार मैं अपना शीश तो दे दूंगा, परन्तु मेरी इच्छा इस महाभारत युद्ध को देखने की थी। तब भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक के शीश को किसी दिव्य औषधि के सहारे जीवित रखा व उसे पीपल की सबसे ऊंची शाखा पर लटका दिया, जिससे वह भली-भांति युद्ध देख सके। बर्बरीक ने उस धर्मयुद्ध को भली-भांति देखा भी था।

युद्ध की समाप्ति पर सभी पाण्डव अपनी विजय के मद में चूर बर्बरीक से अपनी वीरता की प्रशंसा सुनने के लिये आये। इस पर बर्बरीक ने कहा- सत्य तो यह है कि मैंने समस्त कौरव सेना के साथ केवल एक ही पुरूष को लड़ते देखा है।

उस पुरूष के बायीं ओर पांच मुख व पांच भुजायें थी, मस्तक पर चन्द्रमा व गले में सर्पो की माला थी, उसका सम्पूर्ण शरीर भस्म से सरोबार था। उस पुरूष के दायीं ओर चार मुख व चार भुजायें थी। उसके सिर पर मुकुट, हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म था।

गले में पुष्प्प माला व हृदय पर कौस्तुभ मणि थी। उसी दिव्य पुरूष ने समस्त कौरव सेना का संहार किया और उसी के कारण ही महाभारत युद्ध में पाण्डवों को विजय प्राप्त हुई। इसके साथ ही मां दुर्गा, काली के रूप में शत्रुओं का रक्तपान कर रही थीं।

यह कहकर बर्बरीक मौन हो गया। बर्बरीक ने जिस दिव्य पुरूष का वर्णन किया था। उसे सुनकर पाण्डव समझ गये कि वह कोई और नहीं स्वयं भगवान श्री कृष्ण थे। जिन्होंने अपने विराटरूप में कौरवों का संहार किया। पाण्डवों को अपनी भूल का अनुभव हुआ।

क्षण भर में ही उनका गर्व चूर-चूर हो गया। वे सभी नतमस्तक होकर श्री कृष्ण के चरणों पर गिर क्षमा याचना करने लगे। श्री कृष्ण ने प्रसन्नतापूर्वक उन्हें खड़ा किया।

बर्बरीक ने श्री कृष्ण से कहा-प्रभु! अब मेरे लिए क्या आदेश है? श्री कृष्ण बोले-वत्स बर्बरीक! तुम धर्मात्मा हो और मां दुर्गा की कृपा से तुमने अमरता प्राप्त की है, तुम सदैव अदृश्य रूप में यहीं निवास करोगे। संसार की कोई भी गतिविधि तुम्हारी दृष्टि से ओझल नहीं होगी। माना जाता है कि धर्मात्मा बर्बरीक आज भी वहां उपस्थित हैं।

आगे पढ़े

महाभारत की कहानियाँ