Panchali Draupadi Mahabharat Kahani in Hindi – पाँचों पाण्डव अपनी माता कुन्ती के साथ वन में निवास कर रहे थे। पाण्डव भिक्षुकों के वेश बनाकर नगर में भिक्षा मांगने जाते थे। एक दिन उन्होंने राजा द्रुपद की पुत्री द्रौपदी के स्वंयवर की चर्चा सुनी। स्वंयवर की चर्चा सुन वे द्रुपद नगरी की सभी में जा पहुंचे, जहां स्वंयवर चल रहा था। स्वंयवर की शर्त थी कि जो भी पुरूष धनुष का रौंदा (प्रत्यंचा) चढ़ा, तेल से भरी कढ़ाई के ऊपर टंगी मछली की आंख को, तेल में पड़ रहे उसके प्रतिबिम्ब को देखकर बींध देगा, उसी पुरूष का द्रौपदी पति के रूप में वरण करेगी।

Panchali Draupadi Mahabharat Kahani in Hindi

स्वंयवर में भाग लेने के लिए सभा में अनेक देशों के राजा उपस्थित थे, जिनमें दुर्योधन, कर्ण, शाल्प, जरासंघ जैसे महाबली भी बैठे थे। मगर वे पाण्डवों को पहचान नहीं पाये थे। स्वंयवर आरम्भ हुआ। सभी महाबली राजाओं एंव राजकुमारों ने वहां रखे धनुष को उठाकर उसका रौंदा चढ़ाने की चेष्टा की, किन्तु वे सफल न हो सके। अन्त में धनुर्धर अर्जुन उठे और धनुष को उठाने लगे।

डनके ब्राह्मण वेश को देख सभी उन्हें ब्राह्मण ही समझ रहे थे, जिस कारण कई राजाओं ने उन पर कटाक्ष भी किया कि- जिस धनुष पर बड़े-बड़े योद्धा व वीर रौंदा न चढ़ा सके, क्या उस धनुष को यह भिक्षुक ब्राह्मण उठा भी सकेगा। उनके काटक्ष को सुनकर वीरवर अर्जुन तनिक भी क्रोधित नहीं हुए, उन्होंने एक दृष्टि सभा में उपस्थित सभी राजाओं पर डाली और मुस्कराकर एक हाथ से धनुष उठा लिया और दूसरे से रौंदा चढ़ा दिया।

यह देख उपस्थितगण विस्मित रहे गये। उनका आश्चर्य उस समय अपनी पराकाष्ठा पर जा पहुंचा, जब अर्जुन ने मछली की आंख को बींधने जैसा अति कठिन कार्य पलक झपकते ही कर दिया। जहां सभी राजा आश्चर्यचकित थे, वहीं दुर्योधन की आंखे सोचनीय भाव में सिकुड़ गई। ब्राह्मण का शस्त्र कौशल देख, वह दुविधा में पड़ गया। उसने सोचा- धनुर्धर अर्जुन जैसा महारथी! यह ब्राह्मण कुमार….असम्भव! व्ह एक झटके से अपने स्थान से उठा। ब्राह्मण कुमार का चेहरा गौर से देखते ही वह अर्जुन को तुरन्त पहचान गया। फिर उसने अन्य पाण्डवों को भी पहचान लिया।

जिन पाण्डवों को वह लाक्षागृह में अपने षड्यंत्र द्वारा मरा हुआ समझ रहा था, उन्हें अपने सामने जीवित अवस्था में देख दुर्योधन अवाक् रह गया। परन्तु अगले ही पल वह अपने साथी राजाओं के साथ अर्जुन पर टूट पड़ा। किन्तु वह पाण्डवों का कुछ भी बिगाड़ न सका था। उस समय वहां अर्जुन व कर्ण का बाणयुद्ध एंव भीम व शल्य का गदायुद्ध भी हुआ था, परन्तु अर्जुन व भीम के समक्ष उनके दोनों ही प्रतिद्वन्दियों को नीचा देखना पड़ा था।

अर्जुन और भीम स्वयंवर में द्रौपदी को जीतकर जब माता के पास लाये और कहा कि- माता! आज हम यह भिक्षा लाये हैं। तब कुन्ती ने उन्हें बिना देखे ही कह दिया- बेटा! पाँचों भाई मिलकर इसका उपभोग करो। जब इन्हें मालूम हुआ कि ये एक कन्या लाये हैं, तब ये बड़े असमंजस में पड़ गई। इन्होंने सोचा- यदि मैं अपनी बात वापस लेती हूं, तो असत्य का दोष लगता है और यदि अपने पुत्रों को उसी के अनुरूप चलने के लिए कहती हूं, तो सनातन मर्यादा का लोप होता है।

जिन पाण्डवों को वह लाक्षागृह में अपने षड्यंत्र द्वारा मरा हुआ समझ रहा था, उन्हें अपने सामने जीवित अवस्था में देख दुर्योधन अवाक् रह गया। परन्तु अगले ही पल वह अपने साथी राजाओं के साथ अर्जुन पर टूट पड़ा। किन्तु वह पाण्डवों का कुछ भी बिगाड़ न सका था। उस समय वहां अर्जुन व कर्ण का बाणयुद्ध एंव भीम व शल्य का गदायुद्ध भी हुआ था, परन्तु अर्जुन व भीम के समक्ष उनके दोनों ही प्रतिद्वन्दियों को नीचा देखना पड़ा था।

अर्जुन और भीम स्वयंवर में द्रौपदी को जीतकर जब माता के पास लाये और कहा कि- माता! आज हम यह भिक्षा लाये हैं। तब कुन्ती ने उन्हें बिना देखे ही कह दिया- बेटा! पाँचों भाई मिलकर इसका उपभोग करो। जब इन्हें मालूम हुआ कि ये एक कन्या लाये हैं, तब ये बड़े असमंजस में पड़ गई। इन्होंने सोचा- यदि मैं अपनी बात वापस लेती हूं, तो असत्य का दोष लगता है और यदि अपने पुत्रों को उसी के अनुरूप चलने के लिए कहती हूं, तो सनातन मर्यादा का लोप होता है।

पाँचों भाईयों का एक स्त्री से विवाह हो, यह पहले कभी देखा, सुना नहीं गया था। ऐसी स्थिति में देवी कुन्ती कुछ भी निश्चय न कर सकी, वे किंकत्र्तव्यविमूढ़ हो गई। अन्त में उन्होंने धर्मराज युधिष्ठिर की सम्मति चाही, तो युधिष्ठिर ने उन्हें सत्य पर कायम रहने का परामर्श दिया। इस तरह देवी कुन्ती की आज्ञा से पांचों पाण्डवों ने द्रौपदी का पाणिग्रहण किया। पांच पतियों का वरण करने के कारण द्रौपदी पांचाली कहलायी।

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