हेलो दोस्तों। एक इंसान के अंदरूनी मन में बहुत सरे विचार हमेशा चलते रहते हैं। सही विचार इंसान को सही रास्ता दिखते हैं और गलत विचार गलत रस्ते पर ले जाते हैं। लेकिन इंसान के अंतर्मन की एक आवाज़ को इस कविता के माध्यम से बताने की कोशिश की है। कि सही रस्ते पर चलते हुए एक इंसान को अपने मन को किस – किस तरह से समझाना पड़ता हैं। वो आपको इस कविता Khamoshi par ek Kavita में महसूस होगा।
आप सब लोगो से अनुरोध है कि आप इस कविता को पूरा पढ़े और सिर्फ पढ़े ही नहीं, इसको समझने का भी प्रयास करें। हो सकता है शायद इसी तरह के कुछ पलों सी आपकी ज़िन्दगी भी गुजरती हो। उम्मीद करते हैं कि हमारे द्वारा लिखी गयी ये Khamoshi par ek Kavita आपको सब लोगो को पसंद आएगी। कृपया हमें अपना सुझाब ज़रूर प्रदान करें। आप सब को हमारी तरफ से धन्यवाद।
Khamoshi par ek Kavita in Hindi
खामोश जल रहा हूँ।
नादान हूँ पर सब जानता हूँ
इंसान बना रहूं बस ये चाहता हूँ ||
रास्ता कठिन है पर असंभव नहीं
परिणाम से अनजान चल रहा हूँ ||
हर ओर दिखावा घोर अंधकार है
तम को हरने का प्रयास कर रहा हूँ ||
सन्नाटा सा छाया है इस गांव में
कविता से संघर्ष की बात कर रहा हूँ ||
रहता हूँ गूंगे बेहरो की बस्ती में
क्रांति का फिर भी गीत गा रहा हूँ ||
धारा के विपरीत चलना कठिन हैं
ये जानते हुए भी बस चल रहा हूँ ||
कृष्ण ने दिया था अर्जुन को जो उपदेश
उस गीता के ज्ञान पर मैं चल रहा हूँ ||
परिणाम की चाह नहीं है मुझे भी
कर्म कर रहा हूँ बस कर्म कर रहा हूँ ||
सूरज की तरह तो चमकना कठिन हैं
दिए की तरह खामोश जल रहा हूँ ||