Dharamraj Yudhistar ki Pariksha mahabharat kahani in hindi – वनवास के समय पाण्डव जिस वन में निवास कर रहे थे, वहां एक ब्राह्मण के अरणिसहित मन्थनकाष्ठ से (जो किसी वृक्ष की शाखा पर टंगा हुआ था) एक हिरन अपना सींग खुजाने लगा जिससे यह काष्ठ उसके सींग में फंस गया। हिरन उसे लेकर भागा। मन्थनकाष्ठ के न रहने से अग्निहोत्र में बाधा आती देख ब्राह्मण पाण्डवों के पास गये और उनसे वह मन्थनकाष्ठला देने की प्रार्थना की। धर्मराज युधिष्ठिर अपने चारों भाईयों के साथ हिरण के पीछे भागे, परन्तु वह देखते-ही-देखते आंखों से ओझल हो गया। बहुत थक गये थे, प्यास उन्हें अलग सता रही थी।

Dharamraj Yudhistar ki Pariksha

धर्मराज की आज्ञा पाकर नकुल पानी की तलाश में गये, थोड़ी ही दूरी पर उन्हें एक सुन्दर जलाशय मिला। उसके समीप जाकर जैसे ही वे सब पीने के लिए झुके कि उन्हें एक आकाशवाणी सुनाई दी- पहले मेरे प्रश्नों का उत्तर दो, तब जल पीना। परन्तु नकुल को बहुत प्यास लगी थी। उन्होंने आकाशवाणी की तरफ ध्यान नहीं दिया। फलतः पानी पीते ही वे निर्जीव होकर जमीन पर लेट गये।

बाद में धर्मराज ने क्रमशः सहदेव, अर्जुन व भीमसेन को भेजा, परन्तु उन तीनों की भी वही दशा हुई । अन्त में धर्मराज स्वयं वहां पहुंचे। अपने चारों भाइयों की दशा देख वे अत्यन्त व्याकुल हो उठे। उन्होंने भी वही आवाज सुनी। तभी उन्हें एक विशालकाय यक्ष दिखाई पड़ा। उसने युधिष्ठिर से कहा- मेरे प्रश्नों का उत्तर दिये बिना जल पीने के कारण तुम्हारे भाइयों की ऐसी दशा हुई है।

यदि तुम भी ऐसी अनाधिकार चेष्टा करोगे तो मारे जाओगे। युधिष्ठिर उसके प्रश्नों का उत्तर देने के लिए तैयार हो गये। यक्ष ने जो भी प्रश्न किये, युधिष्ठिर ने प्रश्नों का उचित उत्तर दे यक्ष को संतुष्ट कर दिया। उनके उत्तरों से प्रसन्न होकर यक्ष बोला- हे राजन्! अपने भाइयों में से तुम जिस किसी को भी जीवित करना चाहो, उसे मैं जीवन-दान दे दूंगा।

धर्मराज बोले- हे यक्षराज! आप नकुल को जीवित कर दे। यक्ष उनके उत्तर से अचंभित हुआ और बोला- श्रेष्ठ धर्नुधर अर्जुन अथवा बलशाली भीम के स्थान पर तुमने नकुल को जीवित करने की इच्छा क्यों की? धर्मराज ने बताया- मेरे पिताजी की दो भार्याएं थी, कुन्ती व माद्री। मेरी दृष्टि में वे दोनों समान है।

मैं चाहता हूं कि वे दोनों ही पुत्रवती बनी रहें। कुन्ती का पुत्र मैं स्वयं जीवित हूं। मैं चाहता हूं कि माद्री का भी एक पुत्र बना रहे। अतः मैंने अर्जुन व भीम के स्थान पर नकुल को जीवित करने की प्रार्थना की है। युधिष्ठिर की बुद्धिमत्ता व धर्ममत्ता की परीक्षा के लिए स्वयं धर्म ने यह लीला की थी। उनकी इस अद्भुत क्षमता को देखकर वे बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने अपना परिचय देकर चारों भाईयों को जीवित कर दिया। धर्म ने उन्हें कहा- मैं ही मृग बनकर उस ब्राह्मण के मन्थनकाष्ठ को ले आया था, लो यह मन्थनकाष्ठ! युधिष्ठिर ने वह मन्थनकाष्ठ उस ब्राह्मण को लाकर दे दिया।

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