Dhanteras Katha in Hindi

Dhanteras Katha in Hindi – धनतेरस की पौराणिक कथा

Dhanteras Katha in Hindi – धनतेरस की पौराणिक कथा

Dhanteras Katha in Hindi – धनतेरस कार्तिक मास कृष्ण पक्ष त्रोदशी को मनाया जाता है।  इस दिन घर में लक्ष्मी का वास मानते हैं।  इस दिन को धन्वन्तरी वैद्य समंदर से अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे।  इसलिए धनतेरस को धन्वन्तरी जयंती भी कहा जाता है। यह दिन दीपावली आने की पूर्व सुचना देता है , इस दिन बाजार से नया बर्तन खरीदकर लाना शुभ माना जाता है। आईये पढ़ते है Dhanteras Katha in Hindi

Dhanteras Katha in Hindi

धनतेरस की पौराणिक कथा – Dhanteras Katha in Hindi

एक दिन भगवन विष्णु लक्ष्मी जी के साथ मृत्यु लोक में घूम रहे थे। एक जगह रूक कर भगवान विष्णु कुछ सोच कर माता लक्ष्मी से बोले – मैं एक जगह जा रहा हूँ। तुम यहाँ पर बैठ जाओ , लेकिन दक्षिण दिशा की ओर मत देखना। इतना कह कर भगवान विष्णु दक्षिण दिशा की ओर ही चले गए। जब लक्ष्मी माता ने भगवान विष्णु को दक्षिण दिशा की ओर जाते देखा तो सोचा कि भगवान ने मुझे दक्षिण दिशा की ओर देखने से माना कर दिया और खुद उसी दिशा में जा रहे है। इसमें जरूर कोई भेद छुपा है।

ये विचार करते ही माता लक्ष्मी इस भेद को जानने के लिए दक्षिण दिशा की ओर देखने लगीं। इस दिशा में उनके पीली सरसों का खेत दिखाई दिया। उसे देख कर लक्ष्मी जी की आंखें खुश हो गयीं और वह जाकर वे अपना श्रृंगार करने लगीं। आगे जाकर उन्हें गन्ने का खेत दिखाई दिया तो लक्ष्मी जी वहां से गन्ना तोड़कर चूसने लगीं। जब भगवान् विष्णु वहां पर लौटे तो लक्ष्मी जी देख कर क्रोधित हो गए। उनके हाथ में गन्ना देख कर कहने लगे की तुमने खेत से गन्ना तोड़कर बहुत बड़ा अपराध किया है , इसके बदले में तुम्हे इस गरीब किसान की बारह वर्षो तक सेवा करनी होगी।

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यह सुन कर लक्ष्मी घबरायीं परन्तु जो बात भगवान् के मुख से निकर गयी वही उनको करनी थी। तब भगवान् लक्ष्मी जी को छोड़कर क्षीर सागर में चले गए। लक्ष्मी जी भगवान् की आज्ञा मानकर उस किसान के घर चली गयीं और उस किसान की नौकरानी बनकर उसकी सेवा करने लगीं। जिस दिन लक्ष्मी जी किसान के घर पहुंची उसी दिन से किसान का घर धन्य – धान्य से पूर्ण हो गया। जब बारह वर्ष बीत गए तो लक्ष्मी जी जाने लगीं। किन्तु किसान ने उन्हें जाने से रोक लिया। जब भगवान् विष्णु ने देखा कि लक्ष्मी जी नहीं आयी तो वह किसान के घर गए और लक्ष्मी जी से चलने के लिए कहने लगे , परन्तु किसान ने लक्ष्मी जी को नहीं जाने दिया।

तब भगवान् विष्णु बोले , अच्छा तुम अपने परिवार सहित गंगा स्नान के लिए जाओ और गंगा जी में इन् चार कौड़ियों को छोड़ देना। जब तक तुम वापस नहीं आओगे हम यही पर रुकेंगे। किसान ने ऐसा ही किया जैसे ही किसान ने गंगा जी में कोड़ियाँ समर्पित की, तभी चार हाथ गंगा जी से निकल कर उन् कौड़ियों को ले गए |

जब किसान ने ऐसा देखा तो गंगा जी से बोला ! हे गंगा माँ आपके अंदर से ये चार हाथ कहाँ से निकले ? तब माता गंगा ने कहा की हे किसान ये चारो हाथ मेरे ही थे। तू जो ये कोड़ियाँ मुझे भेंट देने के लिए लाया है , किसने दी है ? तब किसान ने बताया की मेरे घर दो प्राणी आये हैं उन्होंने ही ये दो कोड़ियाँ दी हैं। तब गंगा माता ने किसान को बताया कि तेरे घर में जो औरत रहती है वो साक्षात् लक्ष्मी जी हैं और जो आदमी आया है वो साक्षात् विष्णु भगवान् हैं। तू माता लक्ष्मी को पाने घर से मत जाने देना नहीं तो तू पहले कि तरह ही गरीब हो जायेगा।

ये सुन कर किसान अपने घर वापस आया और भगवान् से बोला कि मैं माता लक्ष्मी को नहीं जाने दूंगा। तब भगवान् बोला कि ये तो इनका दोष था जिसका दंड मैंने इनको दिया था। इनके दंड के बारह वर्ष पूरे हो चुके हैं इसलिए इनको अब वापस जाना ही होगा। लेकिन किसान नहीं माना। तब भगवान् ने हंसकर कहा कि लक्ष्मी जी बहुत ही चंचल है। ये आज नहीं तो कल तेरे घर से अवश्य ही चली जाएँगी। तुम तो क्या अच्छे – अच्छे लोग भी लक्ष्मी जी को नहीं रोक पाए।

लेकिन किसान फिर भी नहीं माना। तब लक्ष्मी जी ने किसान से कहा – हे किसान ! यदि तुम मुझे रोकना चाहते हो तो सुनो , कल तेरस है। अतः कल तुम घर कि अच्छी तरह से साफ़ – सफाई करना। रात्रि में घी का दीपक जला कर रखना। तब मैं तुम्हारे घर में आयूंगी। उस समय तुम मेरी पूजा करना लेकिन मैं तुम्हे दिखाई नहीं दूंगी। किसान ने उनकी बात मान ली और कहाँ कि मैं ऐसा ही करूँगा। इतना कह कर माता लक्ष्मी माता भगवान् के साथ अंतर्धान हो गयीं।

दूसरे दिन किसान ने लक्ष्मी जी के बताये अनुसार ही कार्य किया। उसका घर धन – धान्य से पूर्ण हो गया। इसके बाद वह हर साल पूजा करता रहा। उसको देख कर और भी लोग पूजा करने लगें और ये दुआ माता लक्ष्मी से करने लगे कि हे माता लक्ष्मी जैसे आप उस गरीब किसान के घर आयी थी वैसे ही सबके घर आना। हमारे घर आना। इसी वजह से हर वर्ष तेरस की दिन माता लक्ष्मी की पूजा होने लगी और लोग इसे धन तेरस के नाम से जानने लगे।

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