bheem aur hidimba ka vivah

Bheem aur Hidimba ka Vivah ki Mahabharat Kahani – रात्रि पहर का समय हो चुका था, सफर की थकान से सभी को नींद आने लगी थी। एकचक्र गांव से निकल सभी पाण्डव वन में आ गये ।तब भीम ने कहा- भईया आप लोग निश्चिंत होकर सो जाइये, मैं रात्रि में जाकर पहरा दूंगा। भीम की बात मानकर चारों भाई पाण्डव और कुन्ती एक वृक्ष के नीचे धरती पर ही सो गए। जैसे-जैसे रात बीतने लगी, वन का वातावरण भयावह होने लगा।

हिंसक जीव-जन्तुओं की आवाजों से वन गुंजायमान हो उठा, किन्तु भीम अविचल अपने स्थान पर निर्भय खड़े होकर पहरे पर डटे रहे। जिस वृक्ष के नीचे पाण्डव सोए थे, उससे कुछ ही दूरी पर एक विशाल बरगद का वृक्ष था। वास्तव में वह वृक्ष एक भयानक और मायावी राक्षस हिडिम्ब का आवास था, जहां वह अपनी बहन हिडिम्बा के साथ निवास करता था। दोनों राक्षस भाई बहन बड़े ही बलशाली थे। वे तरह-तरह के रूप धारण करने में दक्ष थे, आकाश में परवाज करना और साथ ही भोजन में मनुष्यों का मांस खाना दोनों को ही बड़ा पसन्द था।

रात्रि का दूसरा पहर बीत चुका था। दिन भर निद्रा लेने के पश्चात् दोनों ही निशाचर राक्षस जाग गए थे। जागते ही हिडिम्ब अपनी बहन से बोला- हिडिम्बा! मुझे कहीं पास ही से मानवों की गंध आ रही है। ऐसा मालूम पड़ता है, यहीं-कहीं मनुष्य है। जल्दी जाकर देख। यदि सचमुच ही मनुष्य दिखाई दे, तो उन्हें मारकर ला। आज बहुत दिनों के पश्चात् हमें मनुष्य का स्वादिष्ट मांस भोजन में खाने को मिलेगा। हिडिम्बा भली प्रकार जानती थी कि एक बार मानव गंध मिलने के पश्चात् उसका भाई मानव मांस खाने के लिए आतुर हो उठता है। अतः वह उसकी बात सुनकर तुरन्त ही चल पड़ी। वह छिपते-छिपाते उस वृक्ष के पास पहुंच गई, जहां कुन्ती अपने चारों पुत्रों के साथ गहरी निद्रा में लीन थी और भीम खड़ा पहरा दे रहा था। हिडिम्बा ने उन सभी को देखा, किन्तु भीम पर तो जैसे उसकी दृष्टि ठहर-सी गई।

हिडिम्बा ने अब तक बहुत से पुरूषों को देखा था, किन्तु भीम जैसा विशालकाय पुरूष आज उसने पहली बार ही देखा था। भीम का लम्बा कद, सुडौल भुजा, सुगठित शरीर, हष्ट-पुष्ट अंग, चैड़ी छाती और तेजोमय मुखमण्डल को देखकर हिडिम्बा जैसे अपनी सुध-बुध खो बैठी थी। वह तन-मन से भीम पर न्यौछावर हो गई। भीम के आकर्षण में बंधकर वह यह भी भूल गई कि उसके भाई हिडिम्ब ने उसे वहां इन मनुष्यों को मारने के लिए भेजा है।

हिडिम्बा का हृदय भीम का सान्निध्य पाने के लिए आतुर हो उठा। उसने मन-ही-मन निश्चय किया कि चाहे जो भी हो, वह इन मनुष्यों को नहीं मारेगी और किसी भी तरह वहां खड़े बलशाली मनुष्य (भीम) को अपना बनाएगी। हिडिम्बा ने अपना राक्षसी रूप त्याग कर, एक सुन्दर स्त्री का रूप धारण कर लिया।

अपने अंग-प्रत्यंग से कामुकता का प्रदर्शन करती हुई भीम के करीब पहुंचकर बोली- हे सुन्दर पुरूष! तुम कौन हो? इस भयानक वन में क्यों आये हो? क्या तुम्हें नहीं मालूम कि यहां हिडिम्ब नामक एक भयानक राक्षस निवास करता है? उसे मनुष्यों का मांस खाना बहुत प्रिय है, यदि वह यहां आ गया तो वह तुम सबको मारकर खा जाएगा। इतनी रात को उस भयानक वन में एक रूपसी स्त्री को देख भी आश्चर्य में पड़ गये। वह सोचने लगे- यह स्त्री मुझे जिस हिडिम्ब राक्षस का भय दिखाकर सचेत कर रही है, क्या इसे स्वंय उस राक्षस का भय नहीं है?

भीम को सोच में पड़ा देख हिडिम्बा बोली- तुम चिन्ता न करो। यदि तुम मेरी बात मानकर मुझसे विवाह कर लो तो मैं केवल तुम्हें ही नहीं, बल्कि तुम्हारे जो साथी गहरी निद्रा में लीन हैं, उन सभी को यहां से लेकर कहीं दूर उड़ जाऊंगी। तब हिडिम्ब तुम्हारा कुछ भी न बिगाड़ पाएगा। मैं सोचती हूं, तुम्हें सत्य बता ही दूं। मैं हिडिम्ब की बहन हिडिम्बा हूं। हिडिम्बा की यह बातें सुनकर भीम को उसका सारा आशय समझ में आ गया। वह हंसते हुए बोले- हिडिम्बा! मुझे तुम्हारे राक्षस भाई का लेशमात्र भी भय नहीं है। यदि वह राक्षस है , तो मैं भी क्षत्रिय हूं।

क्षत्रिय अपने शत्रु का सिर कुचलना भली प्रकार जानते हैं। रही बात तुमसे विवाह की, तो उसे तो तुम भूल ही जाओ। तुम राक्षसी और मैं मनुष्य, भला तुम्हारा मेरा क्या मेल? हिडिम्बा बोली- इसमें बुराई वाली बात कौन-सी है? ऐसे विवाह तो प्राचीन काल से होते आए हैं। देवताओं द्वारा धरती की कन्याओं से, ऋषियों द्वारा देवलोक की अप्सराओं से न जाने कितने ही प्रेम और गन्धर्व विवाह हुए हैं, फिर मैं तो तुम्हारे प्रेम में पड़कर मन-ही-मन अपना सर्वस्य तुम्हें सौंप चुकी हूं। रही बात मेरे राक्षसी होने की तो मैं तुम्हें वचन देती हूं कि मेरा जो मोहक रूप तुम देख रहे हो, मैं सदैव ही इस रूप में तुम्हारे साथ रहूंगी।

मैं तुम्हें वह सभी सुख दूंगी जो एक पति अपनी पत्नी से चाहता है। भीम ने कहा- माना कि तुमने मुझसे प्रेम किया है, परन्तु मैंने तो ऐसा नहीं सोचा। मैं तुम्हारे साथ विवाह नहीं कर सकता। हिडिम्बा और भीम का यह वार्तालाप चल ही रहा था कि हिडिम्ब वहां आ पहुंचा। उन दोनों की बातें सुनकर उसके हृदय में क्रोधाग्नि सुलग उठी। वह अपनी बहन पर क्रोधावस्था में बोला- मूर्ख हिडिम्बा! मैंने तुझे यहां इन पुरूषों को मारने भेजा था और तू यहां अपने प्रेम का राग अलाप रही है। अब मैं इन मनुष्यों को तो खा ही जाऊंगा, साथ ही तुझे भी नहीं छोडूंगा।

अब हिडिम्बा राक्षसी भले ही थी, किन्तु थी तो स्त्री ही। हिडिम्ब का इस प्रकार उस पर क्रोध करना भीम को कदापि अच्छा न लगा। उन्होंने हिडिम्ब को ललकारते हुए कहा- इस स्त्री पर क्यों क्रोध दिखाता है, साहस है तो आ….मुझसे युद्ध कर। भीम की यह ललकार सुनकर हिडिम्ब बड़ी द्रुत गति से भीम पर झपट पड़ा। भीम तो पूर्व से ही इसके लिए तैयार थे। देखत-ही-देखते उन दोनों में भयानक मल्लयुद्ध छिड़ गया।

दोनों भयानक गर्जना करते हुए एक-दूसरे पर घात-प्रतिघात कर रहे थे। हिडिम्बा एक ओर खड़ी इस युद्ध को देख रही थी। उन दोनों की हुंकारो और धमक से कुन्ती और उसके चारों पुत्र भी निद्रा से जाग उठे। उन्होंने बड़े आश्चर्य से यह दृश्य देखा तो भीम के चारों भाई भी उनकी सहायता के लिए तत्पर हो गए, किन्तु भीम ने उन्हें रोकते हुए कहा- ठहरो! इस राक्षस के लिए तो मैं स्वंय अकेला ही बहुत हूं।

भीम की यह बात सुनकर वे चारों अपने स्थान पर रूककर उन दोनों का युद्ध देखने लगे। कुछ ही देर बाद भीम हिडिम्ब पर हावी हो गए और उन्होंने हिडिम्ब को अपने हाथों से ऊपर उठाकर इतनी जोर से धरती पर पटका कि उसके प्राण पखेरू उड़ गए। हिडिम्ब के मरणोपरान्त जहां सभी पाण्डव भाई खुश थे, वहीं हिडिम्बा को अपने भाई की मृत्यु का बहुत दुःख हुआ, किन्तु उसने अपना दुःख वहां प्रकट नहीं किया।

अब तक युद्ध की तरफ ही उलझे रहने के कारण कुन्ती और पाण्डव भाईयों की दृष्टि वहीं पास में खड़ी हिडिम्बा पर नहीं पड़ी थी। जैसे ही कुन्ती ने उसे देखा तो आश्चर्य से उससे पूछा- पुत्री! तुम कौन हो? रात्रि के समय इस भयानक वन में क्या कर रही हो? अब तक उनकी बातों से हिडिम्बा यह जान चुकी थी कि यह स्त्री भीम की मां है और ये चारों मनुष्य भीम के भाई हैं। उसने अपने हाथ जोड़कर बड़े विनम्र भाव से कुन्ती को अपना परिचय दिया और अब तक की सारी घटना सच-सच बता दी।

हिडिम्बा की बात सुनकर कुन्ती सहित चारों पाण्डव भाई भीम की ओर देखने लगे। उन्हें इस प्रकार से अपनी ओर देखता पाकर भीम तनिक अचकचा कर बोल पड़े- आप लोग मेरी ओर इस तरह न देखें। इस सब में मेरा कोई कसूर नहीं है। मैंने तो पूर्व ही इसे विवाह के लिए मना कर दिया है। भीम की बात सुनकर हिडिम्बा बोली- आपके पुत्र सत्य कह रहे हैं, मां जी! किन्तु मेरा भी निश्चय अटल है, मैं आपके पुत्र के अतिरिक्त किसी अन्य से विवाह नहीं करूंगी।

हिडिम्बा की बात सुनकर कुन्ती सोच में पड़ गई। फिर कुछ क्षण चुप रहने के पश्चात् बोली- पुत्र भीम! यह सत्य है कि हिडिम्बा एक राक्षसी है और हम मनुष्य किन्तु तुम यह भी तो सोचो कि इसने अपने भाई के विषय में तुम्हें सचेत किया और युद्ध में उसका साथ न देकर एक ओर शान्त भाव से खड़ी रही। चाहे प्रेम के कारणवश ही, लेकिन इसके हृदय में हम सबकी रक्षा करने का विचार तो आया। सोच-विचार किसी राक्षसी की नहीं, बल्कि मानवता की निशानी है। मैंने स्वंय हिडिम्बा की आंखों में देखा है, वह मुझे निश्छल प्रेम के अतिरिक्त और कुछ भी दिखाई नहीं देता।

यदि प्रेम और श्रद्धा करने वाली पत्नी नीच कुल में भी मिले तो उसे सहर्ष स्वीकार कर लेना चाहिए। अपनी मां के वचनों को सुन भीम समझ गए कि उनके मन में हिडिम्बा के प्रति दया उत्पन्न हो गई है। अब उन्हें समझा पाना बेहद कठिन है। कुछ सोचते हुए भीम ने कहा-हे माते! यदि तुम्हारी ऐसी इच्छा है, तो मैं हिडिम्बा से विवाह करने के लिए तैयार हूं, किन्तु मेरी एक शर्त है। इससे पूर्व कुन्ती कुछ कहती हिडिम्बा तत्परता से बोली- मुझे आपकी सभी शर्ते स्वीकार हैं।

भीम ने कहा- जब भी हमारी कोई सन्तान उत्पन्न होगी, तब मैं हिडिम्बा का साथ छोड़ दूंगा। यद्यपि हमारा वैवाहिक सम्बन्ध बना रहेगा, परन्तु फिर भी हमें अलग रहना पड़ेगा। हिडिम्बा प्रसन्नता पूर्वक बोली- मुझे स्वीकार है पति न सही, पति की निशानी हमारी सन्तान तो मेरे साथ ही रहेगी। इस तरह कुन्ती ने वहीं वन में भीम व हिडिम्बा का गन्धर्व विवाह करा दिया। विवाह के पश्चात् हिडिम्बा ने कुन्ती के चरणों को छूकर कहा- मां जी! अब हमें आज्ञा दीजिए! मैं अपने पति के साथ घूमने जाऊंगी। जब हमें सन्तान होगी, तब मैं आपके पुत्र को आपके पास पहुंचा दूंगी। कुन्ती ने भीम व हिडिम्बा को आशीर्वाद दिया। हिडिम्बा भीम को अपने साथ लेकर उड़ गई।

कई माह तक वे दोनों वनों, पर्वतों व समुद्र सहित विभिन्न मनोरम स्थलों पर भ्रमण व प्रेमलाप करते रहे। राक्षसों के वंश में शीघ्र ही गर्भ ठहरता है और शीघ्र ही बालक उत्पन्न होने के कुछ दिन बाद ही बड़ा भी हो जाता है। विवाह के कुछ माह पश्चात् ही हिडिम्बा ने एक पुत्र को जन्म दिया। जन्म के समय बालक के सिर पर बाल नहीं थे। इस कारण भीम व हिडिम्बा ने उसका नाम घटोत्कच रखा।

शर्त के अनुसार, भीम व हिडिम्बा के अलग होने का समय आ गया था। वे दोनों कुन्ती के पास पहुंचे। हिडिम्बा ने कुन्ती से कहा- मां जी! मैं अपने वचन के अनुसार आपके पुत्र को आपको सौंपकर जा रही हूं। अब मुझे आज्ञा दीजिए, किन्तु कभी मुझे अपने से अलग न समझिएगा। आप जब भी याद करेंगी, मैं और मेरा पुत्र घटोत्कच आपकी सेवा में उपस्थित हो जायेंगे। कुन्ती ने भारी मन से हिडिम्बा व घटोत्कच को आशीर्वाद देकर विदा किया। हिडिम्बा अपने पुत्र के साथ द्वारिका की तरफ उड़ गई।