बकासुर का वध

Bakasur ka Vadh ki Mahabharat Kahani in Hindi – लाक्षागृह से निकलकर जब ये अपने पुत्रों के साथ एकचक्र नगरी में रहने लगी, उन दिनों वहां की जनता भारी संकट से गुजर रही थी। उस नगरी के पास ही बकासुर नामक राक्षस रहता था। उस राक्षस के लिए नगरवासियों को एक गाड़ी अन्न तथा दो भैंसे प्रतिदिन पहुंचाने पड़ते थे। जो मनुष्य इन्हें लेकर जाता था, राक्षस उसे भी खा जाता था। वहां के नगरवासियों को बारी बारी से यह काम करना पड़ता था। पाण्डव लोग जिस ब्राह्मण के घर में भिक्षुकों के रूप में रह रहे थे। एक दिन उसके घर से राक्षस हेतु आदमी भेजने की बारी आई। ब्राह्मण परिवार में कोहराम मच गया। कुन्ती को जब इस बात का पता चला तो उनका हृदय करूणा व दया से भर उठा। उन्होंने सोचा- हम लोगों के रहते ब्राह्मण परिवार को कष्ट भोगना पड़े, यह हमारे लिए लज्जा की बात है।

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फिर ये लोग हमारे अन्नदाता हैं, आश्रयदाता हैं। इनका परोपकार हमें किसी न किसी रूप में तो करना ही होगा। जब हम इन लोगों के घर में रह रहे हैं, तो इनका दुःख बांटना हमारा कत्र्तव्य बन जाता है। ऐसा विचार कर कुन्ती ब्राह्मण के पास गई। उन्होंने देखा ब्राह्मण अपनी पत्नी व पुत्र के साथ बैठा है, वह अपनी स्त्री से कह रहा था- तुम कुलीन, शीलवती एंव बच्चों की मां हो। मैं राक्षस से अपने प्राणों की रक्षा के लिए तुम्हें उसके पास नहीं भेज सकता। पति की बात सुन ब्राह्मणी बोली- नहीं, मैं स्वंय उसके पास जाऊंगी। पत्नी के लिए सबसे बढ़कर सनातन धर्म यही है कि वह अपने प्राणों की आहुति दे पति के हित में कार्य करें। स्त्रियों के लिए यह परम सौभाग्य की बात है कि वह अपने पति से पूर्व परलोक वासिनी हो जाये।

यह भी सम्भव है कि स्त्री को अवध्य समझकर वह राक्षस मुझे न खायें। पुरूष का वध निर्विवाद है और स्त्री का सन्देहग्रस्त। अतः मुझे ही उसके पास भेजिये। अपने माता-पिता की बात सुन ब्राह्मण कन्या दुःखी स्वर में बोली- आप लोग क्यों रो रहें हैं? देखिये धर्म के अनुसार आप दोनों मुझे एक-न-एक दिन छोड़ देंगे। अतः आज ही मुझे छोड़कर अपनी रक्षा क्यों नहीं कर लेते? लोग सन्तान की कामना इसलिए करते हैं कि समय आने पर सन्तान माता-पिता को दुःखों से बचायें। अपनी कन्या के वचन सुन मां-बाप दोनों रोने लगे। कन्या भी रोने लगी। सबको रोते देख ब्राह्मण कुमार जो अभी छोटा ही था, बोला- पिताजी, माता जी बहन! मत रोओ। फिर उसने एक तिनका उठाकर हंसते हुए कहा- मैं इसी से राक्षस को मार डालूंगा। तब सब लोग हंस दिये। कुन्ती यह सब देख-सुन रही थी।

वह आगे बढ़ उनसे बोली- महाराज! आपके तो एक पुत्र तथा एक ही कन्या है। मेरे पास आपकी दया से पांच पुत्र हैं। राक्षस को भोजन पहुंचाने के लिए मैं उनमें से किसी को भेज दूंगी, आप घबराइये नहीं। ब्राह्मण देवता कुन्ती के इस प्रस्ताव को सुन अवाक् रह गये और बोले- हे देवी! आपका इस प्रकार कहना , आपकी अपार दया को प्रकट करता है, किन्तु मैं अपने प्राणों की रक्षा के लोभ में अतिथि की हत्या नहीं करा सकता। अपनी रक्षा हेतु आपको पुत्र के बलिदान के बारे में सोचना भी हमारे लिए महापाप है। नहीं, यह सम्भव नहीं है। संकट हमारे प्राणों पर आया है। हम ही उसका सामना करेंगे। तब कुन्ती बोली- हे ब्राह्मण देवता! मैं अपने जिस पुत्र को राक्षस के पास भेजूंगी, वह बड़ा बलवान तथा तेजस्वी है। उसका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता। वह बकासुर जैसे राक्षसों को धूल में मिला देने का साहस रखता है। ईश्वर ने चाहा तो सब कुशल रहेगा। इस पर ब्राह्मण देवता तैयार हो गए।

तब कुन्ती ने भीमसेन को बकासुर के पास जाने की आज्ञा दी। गदा युद्ध में भीमसेन के समक्ष कठिनता से ही कोई टिक पाता था। वे महाबली होने के साथ वीर योद्धा भी थे। भीमसेन को अपने चारों भाई व माता कुन्ती अत्यन्त प्रिय थे। उनकी आज्ञा पर वे अपने प्राणों की होड़ लगा देने से भी नहीं चूकते थे। माता की आज्ञा शिरोधार्य कर भीम तुरन्त बकासुर के पास जाने को तैयार हो गये। भीम ने एक गाड़ी पर बकासुर का भोजन रखा और भैंसों के स्थान पर स्वंय ही गाड़ी को खींचते हुए बकासुर की गुफा की तरफ चल दिया।

अपनी गुफा के बाहर भोजन की प्रतीक्षा में बैठे बकासुर ने जब मोटे-तगड़े और विशाल शरीर वाले भीम को देखा, तो वह प्रसन्न होकर सोचने लगा- वाह! आज तो तगड़ा मनुष्य आया है। बहुत मजा आयेगा इसे खाने में। तभी उसकी दृष्टि भोजन वाली गाड़ी पर पड़ी, तो वह चैंक पड़ा। उसमें भैंसे नहीं थीं। बकासुर ने गरजकर भीम से पूछा- मेरी भैंसें कहां हैं? भीम ने बड़े शान्त स्वर में उत्तर दिया- गांव में दूध की कमी हो रही थी, अतः गाय व भैंसों की आवश्यकता वहां है, न कि यहां। भीम का यह उत्तर सुनकर बकासुर क्रोध में भर उठा।

तब कुन्ती ने भीमसेन को बकासुर के पास जाने की आज्ञा दी। गदा युद्ध में भीमसेन के समक्ष कठिनता से ही कोई टिक पाता था। वे महाबली होने के साथ वीर योद्धा भी थे। भीमसेन को अपने चारों भाई व माता कुन्ती अत्यन्त प्रिय थे। उनकी आज्ञा पर वे अपने प्राणों की होड़ लगा देने से भी नहीं चूकते थे। माता की आज्ञा शिरोधार्य कर भीम तुरन्त बकासुर के पास जाने को तैयार हो गये। भीम ने एक गाड़ी पर बकासुर का भोजन रखा और भैंसों के स्थान पर स्वंय ही गाड़ी को खींचते हुए बकासुर की गुफा की तरफ चल दिया।

अपनी गुफा के बाहर भोजन की प्रतीक्षा में बैठे बकासुर ने जब मोटे-तगड़े और विशाल शरीर वाले भीम को देखा, तो वह प्रसन्न होकर सोचने लगा- वाह! आज तो तगड़ा मनुष्य आया है। बहुत मजा आयेगा इसे खाने में। तभी उसकी दृष्टि भोजन वाली गाड़ी पर पड़ी, तो वह चैंक पड़ा। उसमें भैंसे नहीं थीं। बकासुर ने गरजकर भीम से पूछा- मेरी भैंसें कहां हैं? भीम ने बड़े शान्त स्वर में उत्तर दिया- गांव में दूध की कमी हो रही थी, अतः गाय व भैंसों की आवश्यकता वहां है, न कि यहां। भीम का यह उत्तर सुनकर बकासुर क्रोध में भर उठा।

वह अभी भीम को कुछ कहता कि भीम ने जो कुछ करना आरम्भ किया, उसे देखकर वह हैरत में पड़ गया। भीम ने धरती पर केलों का एक बड़ा-सा पत्ता बिछा, गाड़ी में रखा भात व सब्जी पत्ते पर परोस दी। भोजन पत्ते पर रख उसने वहीं बैठकर भोजन करना आरम्भ कर दिया। बकासुर के देखते-ही देखते भीम गाड़ी पर रखा सारा भोजन डकार गया। यह देख बकासुर क्रोध से पागल हो उठा। वह भयानक गर्जना करता हुआ भीम पर झपटा और धरती पर पालथी मारकर बैठे भीम को जोर का धक्का दिया, किन्तु भीम पर तो जैसे उसके भीषण प्रहार का तनिक भी प्रभाव नहीं पड़ा। वह बड़े आराम से अपने स्थान पर बैठकर, अपने पेट पर हाथ फेरते रहे। अब बकासुर भीम के पीछे आकर खड़ा हो गया और उन्हें अपनी भुजाओं में जकड़ उठाने लगा।

बकासुर ने अपनी सारी ताकत लगा दी, परन्तु भीम को उठाना तो दूर वह उसे एक सूत हिला भी न सका। तब बकासुर ने भीम की गरदन पर अपने दोनों हाथों से जोरदार प्रहार किया। भीम ने बकासुर के इस प्रहार पर इस तरह मुंह बनाया, मानों उसकी गर्दन पर कोई मच्छर-मक्खी आकर बैठ गई हो। भीम बकासुर से बोला- अरे भाई! क्यों परेशान करते हो? अब तुम्हारे लिए क्या रखा है यहां? अब जाओ यहां से। क्यों मेरे बढ़िया भोजन का आनन्द मिट्टी में मिला रहे हो? भीम की इन बातों ने जैसे बकासुर के क्रोधाग्नि में घी डाल दिया। वह आश्चर्य तथा क्रोध से अपने पांव धरती पर पटकने लगा। उसे ऐसा करते देख भीम अपने स्थान से उठ खड़ा हुआ और हंसते हुए बोला- तो यूं कहो न कि कुश्ती लड़ना चाह रहे हो। चलो कम से कम तुम्हारी यह इच्छा तो अभी पूरी किये देता हूं। इतना कहते ही भीम विद्युत गति से आगे बढ़े और बकासुर की छाती पर अपने एक हाथ से प्रहार किया।

बकासुर भीम का यह प्रहार सहन न कर सका और भरभराता हुआ धरती पर औंधे मुंह गिर पड़ा। तुरन्त ही वह सम्भलकर खड़ा हो गया। वह भली प्रकार समझ गया था कि आज उसका पाला किसी साधारण मनुष्य से नहीं, बल्कि किसी महाबली से पड़ा है। बकासुर ने वहीं खड़े अपने करीबी एक विशाल वृक्ष को उसकी जड़ सहित उखाड़ लिया और उसे लेकर भीम पर टूट पड़ा। भीम ने अपने बायें हाथ से उस वृक्ष को रोका तथा दायें हाथ से एक वृक्ष उखाड़ कर बकासुर पर दे मारा। बस फिर क्या था, दोनों आस-पास के वृक्षों को उखाड़ एक-दूसरे पर फेंकने लगे। जब वृक्ष हाथ नहीं लगे तो बड़ी-बड़ी चट्टानें उठाकर एक-दूसरे पर मारने लगे। उन दोनों ही विशालकाय योद्धाओं के इस संग्राम से धरती कांप उठी। वनों में रहने वाले जीव-जन्तु भी भयभीत होकर इधर-से-उधर भागने लगे। ऐसा महसूस हो रहा था, जैसे कोई भूकम्प आ गया हो।

शीघ्र ही बकासुर थकान के कारण हांफने लगा। वह समझ गया था कि आज उसके सामने भोजन के रूप में कोई मनुष्य नहीं वरन् उससे भी बड़ा कोई दानव आ गया है अब तो वह किसी प्रकार वहां से अपने प्राण बचाने हेतु भागने की सोचने लगा। भीम ने उसकी यह मंशा को भांप लिया था। जैसे ही बकासुर भीम के चंगुल से भाग निकलने की कोशिश करता, भीम उसे वापस अपनी ओर खींच लेता और उस पर अपने बलशाली लात-घूंसों का प्रहार करता। अन्त में भीम ने बकासुर को धरती पर घुटनों के बल बिठाकर उसके सिर और हाथों को इतनी जोर से पीछे की ओर मोड़ा कि उसकी रीढ़ की हड्डी कड़कड़ाकर टूट गई। एक क्रन्दनकारी चीख के साथ ही बकासुर ने अपने प्राण वहीं त्याग दिये। बकासुर की आखिरी चीख सुनकर उसके सगे-सम्बन्धी और परिजन भी वहां दौड़े चले आये। जब उन्होंने देखा कि महाबली भीम मृत पड़े बकासुर की छाती पर पैर रखकर खड़े हैं, तो वे सभी भीम के चरणों पर गिर पड़े और भयभीत होकर अपने प्राणों की भीख मांगने लगे। उन्होंने सोचा बकासुर के पश्चात् अब उनकी बारी है।

भीम ने कुछ सोचकर उनसे कहा- बकासुर का हश्र तो तुमने देख ही लिया है। अब तुम सब केवल इसी शर्त पर यहां रह सकते हो कि न तो आज के बाद तुम नरभक्षण करोगे और न ही किसी निर्दोष गांव वालों को सताओगे। यदि तुम्हें यह शर्त अस्वीकार है, तो मैं अभी तुम सभी को समाप्त कर डालूंगा। भयग्रस्त हो दैत्य परिवार के प्रत्येक स्त्री-पुरूष ने भी भीम की शर्त को न सिर्फ स्वीकार किया, बल्कि उन्हें वचन भी दिया कि आज के बाद वह किसी पर भी अत्याचार नहीं करेंगे। तब भीम ने बकासुर के मृत शरीर को बैलगाड़ी पर लादा और उसे खींचकर सभी गांव वालों को दिखाया। बकासुर के मृत शरीर को देख एकचक्र ही नहीं, बल्कि आस-पास के सभी गांव वाले भी मारे खुशी के झूमने लगे। सभी लोगों की जुबान पर अब तो भीम सहित सभी पाण्डवों की चर्चायें थीं। सभी लोगों का यही मानना था कि उनके दुःख दूर करने के लिए ब्राह्मणों के वेश में स्वंय भगवान ही यहां पधारे हैं।

कुन्ती भी अपने पुत्र भीम के इस शौर्य पर बहुत प्रसन्न हुई, किन्तु साथ ही वह चिन्तित भी हो उठी कि भीम के इस अद्भुत पराक्रम की खबर जिस प्रकार तेजी से चारों और फैल रही है, उससे सारा भेद खुल जाने की आशंका हो सकती है। उन्होंने अपने पुत्रों से यह चिन्ता व्यक्त की। सभी ने कुन्ती की बात का समर्थन किया और निश्चय किया कि अब यहां रूकना उचित नहीं है। तब एक दिन बिना किसी को कुछ बताये पांचो पाण्डव और माता कुन्ती एकचक्र गांव को छोड़कर चुपचाप वहां से प्रस्थान कर गये।