Ashwatthama hua shrapit mahabharat ki kahani – महाभारत के अन्त में अश्वत्थामा ने रात्रि में सोये हुए पाण्डव-पुत्रों व धृष्टद्युम्न आदि का वध कर दिया और स्वयं व्यास जी के आश्रम में छिप गये। अश्वत्थामा के क्रूर कर्म का समाचार पाकर भीम व अर्जुन क्रोधाग्नि में सुलगते श्री कृष्ण की आज्ञा पर उससे प्रतिशोध लेने व्यास जी के आश्रम में जा पहुंचे।

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भीम व अर्जुन को आता देख अश्वत्थामा भयभीत हो गया और अपने प्राण बचाने का उपाय सोचने लगा। कोई उपाय ने देख, उसने भीम पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। देखते ही देखते वहां प्रलयकारी अग्नि उत्पन्न हो गई और वह चारों ओर फैलने लगी।

उसे शान्त करने के लिए अर्जुन ने भी ब्रह्मास्त्र प्रकट किया, क्योंकि ब्रह्मास्त्र को ब्रह्मास्त्र के द्वारा ही शान्त किया जा सकता था। दोनों अस्त्रों के आपस में टकराने की भयंकर गर्जना होने लगी। हजारों उल्कायें गिरने लगीं व सभी तरफ हाहाकार मच गया।

यह भयंकर काण्ड देख देवर्षि नारद व व्यास जी दोनों वहां पधारे व दोनों वीरों को शान्त करने लगे। इनके कहने पर अर्जुन ने तो अपना द्विव्यास्त्र तुरन्त लौटा लिया, परन्तु अश्वत्थामा अपने ब्रह्मास्त्र को न लौटा सका क्योंकि उस अस्त्र को सिर्फ ब्रह्मचारी ही लौटा सकता था।

अर्जुन संयमी थे, परन्तु अश्वत्थामा नहीं । अन्त में व्यास जी के कहने पर उसने उस अस्त्र को उत्तरा के गर्भ पर छोड़ दिया, जिस कारण बालक मरा हुआ पैदा हुआ। किन्तु भगवान श्री कृष्ण ने उसे पुनः जीवित कर दिया। तब अर्जुन ने अश्वत्थामा के मस्तक से मणि निकाल ली।

मणि निकल जाने से अश्वत्थामा एक साधारण मानव रह गया। उसमें युद्ध करने की भी क्षमता नहीं बची थी। तत्पश्चात् श्री कृष्ण क्रोधित होकर बोले- रे दुष्ट! तू बड़ा पातकी है, अतः तुझे मुक्ति नहीं मिलेगी। तू युगों-युगों तक जंगलों, पर्वतों में भ्रमण करता रहेगा, परन्तु तुम्हारा चित्त कहीं शान्त न होगा। श्री कृष्ण द्वारा श्रापित हो अश्वत्थामा वन को चला गया।

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